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मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है Hariom Panwar Hindi Poetry

 मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है / हरिओम पंवार Independence day india Hindi Poetry

चर्चा है अख़बारों में

टी. वी. में बाजारों में

डोली, दुल्हन, कहारों में

सूरज, चंदा, तारों में

आँगन, द्वार, दिवारों में

घाटी और पठारों में

लहरों और किनारों में

भाषण-कविता-नारों में

गाँव-गली-गलियारों में

दिल्ली के दरबारों में


धीरे-धीरे भोली जनता है बलिहारी मजहब की

ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की

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मैं होता हूँ बेटा एक किसानी का

झोंपड़ियों में पाला दादी-नानी का

मेरी ताकत केवल मेरी जुबान है

मेरी कविता घायल हिंदुस्तान है


मुझको मंदिर-मस्जिद बहुत डराते हैं

ईद-दिवाली भी डर-डर कर आते हैं

पर मेरे कर में है प्याला हाला का

मैं वंशज हूँ दिनकर और निराला का


मैं बोलूँगा चाकू और त्रिशूलों पर

बोलूँगा मंदिर-मस्जिद की भूलों पर

मंदिर-मस्जिद में झगडा हो अच्छा है

जितना है उससे तगड़ा हो अच्छा है


ताकि भोली जनता इनको जान ले

धर्म के ठेकेदारों को पहचान ले

कहना है दिनमानों का

बड़े-बड़े इंसानों का

मजहब के फरमानों का

धर्मों के अरमानों का

स्वयं सवारों को खाती है ग़लत सवारी मजहब की |

ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||

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बाबर हमलावर था मन में गढ़ लेना

इतिहासों में लिखा है पढ़ लेना

जो तुलना करते हैं बाबर-राम की

उनकी बुद्धि है निश्चित किसी गुलाम की


राम हमारे गौरव के प्रतिमान हैं

राम हमारे भारत की पहचान हैं

राम हमारे घट-घट के भगवान् हैं

राम हमारी पूजा हैं अरमान हैं

राम हमारे अंतरमन के प्राण हैं

मंदिर-मस्जिद पूजा के सामान हैं


राम दवा हैं रोग नहीं हैं सुन लेना

राम त्याग हैं भोग नहीं हैं सुन लेना

राम दया हैं क्रोध नहीं हैं जग वालो

राम सत्य हैं शोध नहीं हैं जग वालों

राम हुआ है नाम लोकहितकारी का

रावण से लड़ने वाली खुद्दारी का

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दर्पण के आगे आओ

अपने मन को समझाओ

खुद को खुदा नहीं आँको

अपने दामन में झाँको

याद करो इतिहासों को

सैंतालिस की लाशों को


जब भारत को बाँट गई थी वो लाचारी मजहब की |

ऐसा ना हो देश जला दे ये चिंगारी मजहब की ||


आग कहाँ लगती है ये किसको गम है

आँखों में कुर्सी हाथों में परचम है

मर्यादा आ गयी चिता के कंडों पर

कूंचे-कूंचे राम टंगे हैं झंडों पर

संत हुए नीलाम चुनावी हट्टी में

पीर-फ़कीर जले मजहब की भट्टी में


कोई भेद नहीं साधू-पाखण्डी में

नंगे हुए सभी वोटों की मंडी में

अब निर्वाचन निर्भर है हथकंडों पर

है फतवों का भर इमामों-पंडों पर

जो सबको भा जाये अबीर नहीं मिलता

ऐसा कोई संत कबीर नहीं मिलता

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जिनके माथे पर मजहब का लेखा है

हमने उनको शहर जलाते देखा है

जब पूजा के घर में दंगा होता है

गीत-गजल छंदों का मौसम रोता है

मीर, निराला, दिनकर, मीरा रोते हैं

ग़ालिब, तुलसी, जिगर, कबीरा रोते हैं


भारत माँ के दिल में छाले पड़ते हैं

लिखते-लिखते कागज काले पड़ते हैं

राम नहीं है नारा, बस विश्वाश है

भौतिकता की नहीं, दिलों की प्यास है

राम नहीं मोहताज किसी के झंडों का

सन्यासी, साधू, संतों या पंडों का


राम नहीं मिलते ईंटों में गारा में

राम मिलें निर्धन की आँसू-धारा में

राम मिलें हैं वचन निभाती आयु को

राम मिले हैं घायल पड़े जटायु को

राम मिलेंगे अंगद वाले पाँव में

राम मिले हैं पंचवटी की छाँव में


राम मिलेंगे मर्यादा से जीने में

राम मिलेंगे बजरंगी के सीने में

राम मिले हैं वचनबद्ध वनवासों में

राम मिले हैं केवट के विश्वासों में

राम मिले अनुसुइया की मानवता को

राम मिले सीता जैसी पावनता को


राम मिले ममता की माँ कौशल्या को

राम मिले हैं पत्थर बनी आहिल्या को

राम नहीं मिलते मंदिर के फेरों में

राम मिले शबरी के झूठे बेरों में

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मै भी इक सौंगंध राम की खाता हूँ

मै भी गंगाजल की कसम उठाता हूँ

मेरी भारत माँ मुझको वरदान है

मेरी पूजा है मेरा अरमान है

मेरा पूरा भारत धर्म-स्थान है

मेरा राम तो मेरा हिंदुस्तान है

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