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विमान-अपहरण Hariom Panwar Hindi poetry read in hindi

 विमान-अपहरण / हरिओम पंवार Hindi poetry read in hindi (hindimehelp)

मैं ताजों के लिये समर्पण, वंदन गीत नहीं गाता

दरबारों के लिये कभी अभिनन्दन-गीत नहीं गाता

गौण भले हो जाऊँ लेकिन मौन नहीं हो सकता मैं

पुत्र- मोह में शस्त्र त्याग कर द्रोण नहीं हो सकता मैं

कितने भी पहरे बैठा दो मेरी क्रुद्ध निगाहों पर

मैं दिल्ली से बात करूँगा भीड़ भरे चौरोहों पर


दिल्ली को कोई आतंकी जादू- टोना लगता है

गीता-रामायण का भारत बौना -बौना लगता है

विस्फोटों की अपहरणों की स्वर्णमयी आजादी है

रोज गौडसे की गोली के आगे कोई गाँधी है

मैनें भू पर रश्मिरथी का घोड़ा रुकते देखा है

पाँच तमंचों के आगे दिल्ली को झुकते देखा है


हम पूरी दुनिया में बेचारे- से हैं

अपमानों की ठोकर के मारे- से हैं

मजबूरी संसद की सीरत लगती है

अमरीका की चौखट तीरथ लगती है

मैं दिनकर का वंशज दिल्ली को दर्पण दिखलाता हूँ

इसीलिए मैं केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

readinhindihelp

जब भारत का यान खड़ा था कंधारों की धरती पर

असमंजसता बनी हुई थी भारतीयों की मुक्ति पर

भीम छुपाकर मुँह बैठे थे बेशर्मी के दामन में

अर्जुन का गांडीव पड़ा था कायरता के आँगन में

रावन अट्टहास करता था पंचवटी की राहों में

राम घिरे लाचार खड़े थे गठबंधन की बाँहों में


हम हमदर्दी खोज रहे थे काबुल वाले गैरों में

हमने टोपी जाकर रख दी अफगानों के पैरों में

जो अफगानी आतंकों की शैली गढ़ते देखे हैं

जिनके बाजू केसर की क्यारी तक बढ़ते देखे हैं

जो दामन में ओसामा लादेन छिपाकर बैठे हैं

अपनी आँखों में पिंडी के नैन छुपाकर बैठे हैं


उनकी साजिश-मक्कारी से मेरा भारत छला गया

और वार्ता करने उनके दरवाजे पर चला गया

भारत खून-सने हाथों से हाथ मिलाने पहुँच गया

सिंहराज कुत्तों के आगे पूंछ हिलाने पहुँच गया

अफगानी चेहरे से उजले मन के भीतर काले थे

तालिबान के सारे पासे मामा शकुनी वाले थे


उनसे कोई आशा करना दिल्ली की नादानी थी

इस चौसर में हर युधिष्ठिर की निश्चित हो जानी थी

दिल्ली के दरबार फ़ैसले ग़लत वरण कर बैठे हैं

पांडव खुद ही पांचाली का चीर-हरण कर बैठें हैं


स्वाभिमान को रहन किये बैठे हैं हम

खुद्दारी को दहन किये बैठे हैं हम

हमने सीने में अपमान सहेज लिया

हत्यारों के साथ मंत्री भेज दिया


मैं इस नादानी पर मुट्ठी कस -कस कर रह जाता हूँ

इसीलिए मैं केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ


जिनके दिल में दया नहीं उमड़ी रमजान महीने में

उनको फर्क नहीं मासूमों के मरने में जीने में

जब हत्यारों ने इंसानी रिश्ते-नाते त्यागे थे

और फिरौती में दिल्ली से छत्तिस कैदी मांगे थे

तब दिल्लीवालों ने केवल निर्णय एक लिया होता

छत्तिस के छत्तिस को तोप के मुँह से बांध दिया होता


काश हमारी दिल्ली की आँखों में काल दिखा होता

सिंहासन की आँखों का भी डोरा लाल दिखा होता

और चुनौती दे दी होती सीधे रावलपिंडी को

भीष्म पितामह क्षमा नहीं कर सकते और शिखंडी को

नयन तीसरा डमरू वाले शिव ने खोल दिया होता

ऊँचे स्वर में लालकिले से हमने बोल दिया होता

तनिक खरोंचें भी आई जो भारत के बाशिंदों को

जिन्दा एक नहीं छोड़ेंगे बंदी पड़े दरिंदों को

बंधक भी बचते भारत का गौरव भी जिन्दा रहता

और हमारा सर दुनिया में यूँ ना शर्मिंदा रहता

आतंकों के आँधी -तूफां - बादल सब रुकते दिखते

चंदा-तारे भारत माँ के चरणों में झुकते दिखते


काश उन्हें हम हिन्दुस्तानी पानी याद दिला देते

उनको क्या उनके पुरखों को नानी याद दिला देते

लेकिन हम तो हर कीमत पर समझौते के आदी हैं

मुँह पर चाँटा खाते रहने वाले गाँधीवादी हैं


ये कायरता का ना खेल हुआ होता

गद्दी पर सरदार पटेल हुआ होता

उग्रवाद की उम्र साँझ कर दी जाती

हर आतंकी कोख बाँझ कर दी जाती


मैं दरबारों की लाचारी को चाणक्य पढ़ाता हूँ

इसीलिए मैं केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ


मुक्त रुबिया का हो जाना निर्णय ग़लत हुआ हमसे

और तभी पूरी घाटी धुंधलाई आतंकी तम से

हमने अपनी खुद्दारी के सही जलजले नहीं किये

और हमारे दरबारों ने लौह-फ़ैसले नहीं किये

अर्जुन मछली की आँखों पर तीर चलाना चूक गये

मुट्ठी भर जुगनू सूरज के ज्योति-कलश पर थूक गये


राजनीति ने अपनी ही सेना के बाजू तोड़ दिए

बारी-बारी समझौतों में ख़ूनी कातिल छोड़ दिये

जब सिंहासन का राजा ही कायर दिखने लगता है

तो पूरा मौसम हत्यारा डायर दिखने लगता है

आखिर यूँ झुकते-झुकते दुनिया से क्या ले लेंगे हम

कोई दिल्ली मांगेगा तो क्या दिल्ली दे देंगे हम


बंधकजन के परिजन भी सब खुदगर्जी में झूल गये

अपने रिश्ते याद रहे भारत माता को भूल गये

उनके हर परिजन ने कायर होने का आभास दिया

नहीं किसी ने त्याग-धर्म का दिल्ली को विश्वाश दिया

काश कि उनके परिवारों ने हिम्मत ना तोड़ी होती

हमने जग में देश-प्रेम की अमर कथा जोड़ी होती

आखिर उन परिवारों की भी कोई जिम्मेदारी थी

सच पूछो तो दिल्ली उनके परिवारों से हारी थी


क्या ये देश उन्हीं का है जो सीमा पर मर जाते हैं

अपना खून बहाकर टीका सरहद पर कर जाते हैं

ऐसा युद्ध वतन की खातिर सबको लड़ना पड़ता है

संकट की घड़ियों में सबको सैनिक बनना पड़ता है

जो भी कौम वतन की खातिर मरने को तैयार नहीं

उसकी संतति को आजादी जीने का अधिकार नहीं


अब जग के दादाओं से डरना छोडो

और कराची से अपना नाता तोड़ो

अब एक और महाभारत लड़ना होगा

चक्र सुदर्शन लेकर के अड़ना होगा


मैं अर्जुन को श्रीकृष्ण की गीता याद दिलाता हूँ

इसीलिए मै केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ


किसके कितने लाल सलोने सीमा पर छिन जाते हैं

गुरु गोविन्द जी बेटे दीवारों में चिन जाते हैं

झाँसी की रानी लड़कर रजधानी मिटवा देती है

पन्ना धाय वफ़ादारी में बेटा कटवा देती है

मंगल पांडे आजादी का परवाना हो जाता है

उधम डायर से बदले को दीवाना हो जाता है


घास-फूँस की रोटी खाकर राणा नहीं लड़े थे क्या

बन्दा बैरागी के सर पर हाथी नहीं चढ़े थे क्या

वीर हकीकत राय धर्म की खातिर मरते देखे हैं

ऋषि दधिची भी अपनी हड्डी अर्पण करते देखे हैं

हाड़ी रानी शीश काट कर थाली में रख देती है

ये गाथा उनको सूरज की लाली में रख देती है


जेल भरे क्यूँ बैठे हैं हम आदमखोर दरिंदों से

आजादी का दिल घायल है जिनके गोरखधंधों से

घाटी में आतंकवाद के कारक सिद्ध हुए हैं जो

बच्चों की मुस्कानों के संहारक सिद्ध हुए हैं जो

उन जहरीले नागो को भी दूध पिलाती है दिल्ली

मेहमानों जैसी बिरयानी-मटन खिलाती है दिल्ली


आज समय को उत्तर देना ही होगा सिंहासन को

चीरहरण की कौन इजाजत देता है दुशाशन को

न्याय-व्यवस्था निर्णय करने में मजबूर रही तो क्यों ?

इनकी गर्दन फाँसी के फंदों से दूर रही तो क्यों ?

जिनकी जहरीली साँसों में आतंकों की आँधी है

उनको जिन्दा रखने में दिल्ली असली अपराधी है


कानूनों की हथकड़ियों को कड़ा करो

इनको फाँसी के फंदों पर खड़ा करो

पागल कुत्ते की हत्या मजबूरी है

गद्दारों को फाँसी बहुत जरुरी है


मैं बजरंगबली को उनकी ताकत याद दिलाता हूँ

इसीलिए मै केवल अग्नीगंधा गीत सुनाता हूँ

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