मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या ? Hindi rahat indori shayari blog
मुझमे कितने राज़ हैं, बतलाऊं क्या
बंद एक मुद्दत से हूँ खुल जाऊं क्या ?
आजिजी, मिन्नत, खुशामद, इल्तिजा,
और मैं क्या क्या करूँ, मर जाऊं क्या ?
कल यहाँ मैं था जहाँ तुम आज हो
मैं तुम्हारी ही तरह इतराऊ क्या ?
तेरे जलसे में तेरा परचम लिए
सैकड़ो लाशें भी हैं गिनवाऊ क्या ?
एक पत्थर हैं वो मेरी राह का,
गर न ठुकराऊं,तो ठोकर खाऊं क्या ?
फिर जगाया तूने सोये शेर को
फिर वहीं लहजा दराजी ! आऊ क्या ?
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