राहत इन्दौरी के हिंदी शायरी ||बुलाती हैं मगर जाने का नहीं ||
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बुलाती हैं मगर जाने का नहीं |
ये दुनिया हैं इधर जाने का नहीं
मेरे बेटे किसी से इश्क कर
मगर हद से गुज़र जाने का नहीं
ज़मीं भी सर पे रखनी हो तो रखो
चले हो तो ठहर जाने का नहीं
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सितारें नोच कर ले आऊंगा
मैं खाली हाथ घर जाने का नहीं
वबा फैली हुई हैं हर तरफ
अभी माहौल मर जाने का नहीं
वो गर्दन नापता है नाप ले
मगर ज़ालिम से डॉ जाने का नहीं |
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