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बांसुरी चली आओ Kumar vishvas hindi poetry 2021

 बांसुरी चली आओ कुमार विश्र्वास Hindi poetry

तुम अगर नही आई गीत गा न पाउँगा 

साँस साथ छोड़ेगी सुर सजा न पाउँगा 

तान भावना की हैं शब्द-शब्द दर्पण हैं 

बांसुरी चली आओ , होंठ का निमंत्रण हैं 

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तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी हैं 

तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी हैं 

रात की उदासी को याद संग खेला हैं 

कुछ गलत ना कर बैठे मन बहुत अकेला हैं 

औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण हैं 

बांसुरी चली आओ होंठ का निमंत्रण हैं 

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तुम अलग हई मुझसे साँस की खताओं से 

भूख की दलीलों से वक्त की सजाओं से 

दूरियों को मालूम हैं दर्द कैसे सहना हैं 

आँख लाल चाहे पर होंठ से न कहना हैं 

कंचना कसौटी को खोट का निमंत्रण हैं 

बांसुरी चली आओ , होंठ का निमंत्रण हैं 


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