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अंतरिक्ष में जाने वाला विश्व का प्रथम व्यक्ति कौन है amazing hindi facts

 मकड़ी अपने जाल में खुद क्यों नहीं चिपकती ?

मकड़ी अपने शिकार को फंसाने के लिए जाल बुनती है। छोटे-छोटे कीड़े इस जाल में आसानी से फंस जाते हैं। इन कीड़ों का जाल से निकलना काफी मुश्किल होता है। लेकिन आपने कभी गौर से देखा होगा तो पाया होगा कि मकड़ी खुद उस जाल में एक-जगह से दूसरे जगह आसानी से घूम लेती है। क्या आपको पता है कि ऐसा क्यों होता है? मकड़ी का पूरा जाल चिपकने वाले नहीं होता है। वह इसका कुछ ही हिस्सा चिपचिपा बुनती है। वहीं, इसके अलावा वैसा हिस्सा जहां मकड़ी खुद आराम से रहती है, वह बिना चिपचिपे पदार्थ के बनाया जाता है। इसलिए वह आसानी से इसमें घूम लेती है। वैसे अपने ही जाल में फंसने से बचने के लिए मकड़ी एक और तरकीब निकालती है। वह रोजाना अपने पैर काफी अच्छे से साफ करती है ताकि इन पर लगी धूल और दूसरे कण निकल जाएं। कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि मकड़ी का पैर तैलीय होता है इसलिए वह जाल में नहीं फंसती और इसमें घूमती रहती है। लेकिन सच यह है कि मकड़ियों के पास ऑयल ग्लैंड्स (ग्रंथियां) नहीं होते हैं। वहीं कुछ वैज्ञानिक इसकी वजह मकड़ी की टांगों पर मौजूद बालों को मानते हैं जिन पर जाले की चिपचिपाहट का कोई असर नहीं होता है।

आसमान में बिजली क्यों चमकती है ?

बादलों में नमी होती है। यह नमी बादलों में जल के बहुत बारीक कणों के रूप में होती है। हवा और जलकणों के बीच घर्षण होता है। घर्षण से बिजली पैदा होती है और जलकण आवेशित हो जाते हैं यानी चार्ज हो जाते हैं। बादलों के कुछ समूह धनात्मक तो कुछ ऋणात्मक आवेशित होते हैं। धनात्मक और ऋणात्मक आवेशित बादल जब एक-दूसरे के समीप आते हैं तो टकराने से अति उच्च शक्ति की बिजली उत्पन्न होती है।

हमें किसी चीज के स्वाद का पता कैसे चलता है?

जीभ हमें स्वाद का ज्ञान कराती है। जीभ मुँह के भीतर स्थित है। यह पीछे की ओर चौड़ी और आगे की ओर पतली होती है। यह मांसपेशियों की बनी होती है। इसका रंग लाल होता है। इसकी ऊपरी सतह को देखने पर हमें कुछ दानेदार उभार दिखाई देते हैं, जिन्हें स्वाद कलिकाएं कहते हैं। ये स्वाद कलिकाएं कोशिकाओं से बनी है। इनके ऊपरी सिरे से बाल के समान तंतु निकले होते हैं। ये स्वाद कलिकाएं चार प्रकार की होती है, जिनके द्वारा हमें चार प्रकार की मुख्य स्वादों का पता चलता है। मीठा, कड़वा, खट्टा और नमकीन। जीभ का आगे का भाग मीठे और नमकीन स्वाद का अनुभव कराता है। पीछे का भाग कड़वे स्वाद का और किनारे का भाग खट्टे स्वाद का अनुभव कराता है। जीभ का मध्य भाग किसी भी प्रकार के स्वाद का अनुभव नहीं कराता, क्योंकि इस स्थान पर स्वाद कलिकाएं प्रायः नहीं होती है। स्वाद का पता लगाने के लिए भोजन का कुछ अंश लार में घुल जाता है और स्वाद-कलिकाओं को सक्रिय कर देता है। खाद्य पदार्थों द्वारा भी एक रासायनिक क्रिया होती है, जिससे तंत्रिका आवेग पैदा हो जाते हैं। ये आवेग मस्तिष्क के स्वाद केंद्र तक पहुँचते हैं और स्वाद का अनुभव देने लगते हैं। इन्हीं आवेगों को पहचान कर हमारा मस्तिष्क हमें स्वाद का ज्ञान कराता है।

आग पानी से क्यों बुझ जाती है?

दहनशील पदार्थ पर्याप्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में जब पर्याप्त उष्मा, जो श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया को सुचारू रूप से चलाने में सक्षम हो, संपर्क में आता है, तो आग पैदा होती है। इनमें से किसी एक की अनुपस्थिति से आग पैदा नहीं हो सकती है। अगर आग एकबार जल जाती है यानी श्रृंखलाबद्ध प्रतिक्रिया शुरू हो जाती है तो जब तक ऑक्सीजन और दहनशील पदार्थ की उपस्थिति रहती है तब तक वह जलती और फैलती रहती है।

आग को ऑक्सीजन और ईंधन में से किसी एक को अलग कर बुझाया जा सकता है। आग पर पानी की पर्याप्त बौछार पड़ती है तो ईंधन को ऑक्सीजन की उपस्थिति में बाधा पड़ती है और आग बुझ जाती है। आग पर कार्बन-डाइऑक्साइड के प्रयोग से भी आग बुझाई जा सकती है। जंगल की आग बुझाने के लिए मुख्य ज्वाला से दूर छोटी छोटी ज्वाला पैदा कर ईंधन की आपूर्ति बंद की जाती है।

हमारा एक पैर दूसरे पैर से बड़ा क्यों होता है?

यदि दोनों पैरों को ध्यान से नापा जाये तो दायां पैर बाएं पैर कि अपेक्षा कुछ बड़ा दिखेगा। हमारे शरीर की रचना पूरी तरह से समान नहीं होती है। हमारा दिल बाई ओर होता है जबकि लीवर दाई ओर। शरीर कि अन्दर कि संरचना पूरी तरह से संतुलन में नहीं होती। इसी के चलते दोनों तरफ के अंगों और हड्डियों का विकास भी समान नहीं होता। इसी असमान विकास के कारण हमारा दायां पैर बाएं पैर से कुछ बड़ा होता है। दायें अंगों के विकास के बारे में कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि लगभग 96% व्यक्ति दायें हाथ से व 4% व्यक्ति बाएं हाथ से काम करते हैं। दायें अंगों से अधिक काम लेने से ही उनका विकास बाएं अंगों कि तुलना में अधिक होता है। 


कुछ लोग गोरे, काले और सांवले क्यों होते हैं?

हमारे आसपास मौजूद सभी लोगों का व्यवहार रंग-रूप, आवाज़ एक-दुसरे से अलग होती है। भले ही यह  सामान्य बात हो लेकिन इसके पीछे भी प्राणी विज्ञान ही काम करता है। मानव का रंग उसकी त्वचा में उपस्थित एक रंगीन पदार्थ पर निर्भर करता है, जिसे पिगमेंट कहते हैं। जो पिगमेंट पूरा रंग लिए होता है उसे मेलेनिन कहते हैं। सूर्य के प्रकाश में शरीर के ऊतकों द्वारा अधिक मेलेनिन पैदा किया जाता है। ऐसा सूर्य के प्रकाश में उपस्थित पराबैगनी किरणों के कारण होता है। इन किरणों के प्रभाव से अधिक मेलेनिन उत्त्पन्न होने के कारण रंग काला हो जाता है। यही कारण है कि गर्म प्रदेशों में रहने वालों की त्वचा का रंग अधिक मेलेनिन होने के कारण काला होता है जबकि ठन्डे प्रदेशों में रहने वालों की त्वचा का रंग गोरा होता है। ठन्डे प्रदेशों में मेलेनिन का निर्माण कम होता है। 

सी एन जी क्या होती है?

आज के दौर में जब वायु प्रदुषण अपने चरम पे है, ऐसे में वातावरण को प्रदूषित होने से बचाने के लिए सी एन जी का उपयोग प्रभावी साबित होता है। सी एन जी का पूरा नाम "संपीडित प्राकृतिक गैस" है। यह गैस रंगहीन, ग्न्धीन और हवा से हलकी होती है। यह पेट्रोल और डीजल की तुलना में 70% कम CO(कार्बन मोनो-ऑक्साइड) का उत्सर्जन करती है। वातावरण की दृष्टि से यह गैस सबसे कम प्रदूषण करती है। यह गैस पृथ्वी के अन्दर पाए जाने वाले हाइड्रोकार्बन का मिश्रण होती है। और इसमें 80-90% मीथेन गैस होती है। वर्तमान समय में इसका उपयोग बिजली घरों, खाद कारखानों, इस्पात कारखानों, घरेलु तथा वाहन ईधन के रूप में किया जा रहा है।

वायुयान के टायरों में नाइट्रोजन गैस क्यों भरी जाती है?

हवा में 78 फीसदी तक नाइट्रोजन होती है, जबकि 21 फीसदी आक्सीजन और एक फीसदी अन्य गैस। नाइट्रोजन से रबर को कोई नुकसान नहीं होता, जबकि आक्सीजन से टायर खराब हो सकता है। आक्सीजन से अक्सर टायर की इलास्टिसिटी और मजबूती खो देता है। ऐसे में आक्सीजन रबर के कणों पर अटैक कर देती है, जिससे टायर फटने का खतरा रहता है। नाइट्रोजन आक्सीजन की अपेक्षा कूल होती है और रबर फ्रेंडली है। हालांकि, नाइट्रोजन पूरी तरह शुद्ध नहीं होती। नाइट्रोफिल से टायर का इंफ्लेशन कम हो जाता है और वह टायर का सामान्य रहने में मदद करती है। नाइट्रोजन लंबे समय तक टायर में रह सकती है, जबकि आक्सीजन जल्दी बाहर निकल जाती है।

दिन भर रोते और कान क्यों हिलाते रहते हैं हाथी?

आपने हमेशा देखा होगा कि हाथी दिन भर अपने कान हिलाता रहता है, क्‍या आपने कभी सोचा कि ऐसा क्‍यों? असल में हाथी अपने विशालकाय शरीर की गर्मी को कानों के जरिये बाहर छोड़ता है। यह काम हाथी के कानों की कोशिकाएं करती हैं। यही कारण है कि अफ्रीका के हाथियों के कान बहुत बड़े होते हैं, क्‍योंकि वहां गर्मी ज्‍यादा पड़ती है। हाथी की आंखों की रोशनी बहुत कम होती है। खास बात यह है कि तेज़ रोशनी में उन्‍हें कम दिखाई देता है और कम रोशनी में ज्‍यादा। हाथी की आंख की पुतलियां बहुत जल्‍दी सूख जाती हैं, जिस वजह से वो अपनी आंख की पुतलियां हिला नहीं पाता है। पुतलियां आसानी से हिल सके, इसके लिए उन्‍हें नम रखना जरूरी होता है, यही कारण है कि हाथी की आंख में एक तरल पदार्थ की सप्‍लाई होती रहती है, जो ज्‍यादा होने पर आंख से बाहर निकल आता है, जिसे हम आंसू समझ बैठते हैं।

अंतरिक्ष में जाने वाला विश्व का प्रथम व्यक्ति कौन है

सबसे पहले अंतरिक्ष की यात्रा की रूस के करनल यूरी ऐलैक्सेविच गगारिन ने। यूरी का जन्म 1934 में एक साधारण कृषक परिवार में हुआ था। उन्होने विमान चालन का प्रशिक्षण लिया और 1967 में ज़ुकोव्स्की एयर फ़ोर्स इंजीनियरिंग ऐकेडमी से डिग्री हासिल की। फिर वौस्तौक वन अंतरिक्षयान के चालक के रूप में 12 अप्रैल 1961 को यूरी गगारिन ने पृथ्वी की कक्षा का 108 मिनट तक चक्कर लगाया। यात्रा से लौटकर उन्होने जिन शब्दों में काले आकाश, चमकदार सितारों और नीली पृथ्वी का वर्णन किया वो किसी कविता से कम नहीं था।

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