Header Ads

अपडेट

6/recent/ticker-posts

मधुशाला भाग 3 [९७-१३५](97-135) Harivansh rai Bachchan hindi poetry part 3

मधुशाला भाग 3 [९७-१३५](97-135) -हरिवंश राय बच्चन


readinhindihelp

मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,

यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,

मानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में,

'भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का पाठ पढ़ाती मधुशाला।।९७।


किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला,

ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला,

किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया,

किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।।९८।


उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,

उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,

प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!

पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।।९९।


साकी के पास है तनिक सी श्री, सुख, संपित की हाला,

सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,

रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,

जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।।१००।


साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,

क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला,

हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,

हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।।१०१।


साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,

पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,

जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,

भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।।१०२।


जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,

जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,

मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,

दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।१०३।


नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,

नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,

साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,

इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।।१०४।


मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,

क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,

साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,

प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।।१०५।


क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,

क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,

पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!

मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।।१०६।


देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,

देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,

समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,

किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।।१०७।


एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,

भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,

छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,

विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।१०८।


बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,

भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,

एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,

जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।।१०९।


एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,

एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,

एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,

आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।।११०।


जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,

छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,

आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,

कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।१११।


कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,

कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,

कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,

प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।।११२।

hindihelp

बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,

कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,

पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,

मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।।११३।


छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,

चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,

अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,

क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।।११४।


यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,

तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,

जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को

अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।।११५।


कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,

टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,

कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,

कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।।११६।


कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,

कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,

कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,

कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।।११७।


दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता - हाला! हाला!

मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,

मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,

मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।।११८।


मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,

प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,

इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया -

मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।

read in hindi help

किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,

इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,

अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,

एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।।१२०।


वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,

जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,

मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,

भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।।१२१।


मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,

पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,

साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,

मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।।१२२।


मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छूंछा प्याला,

गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,

कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!

बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।।१२३।


कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,

कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!

पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?

फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।।१२४।

harivanshraibachchan

अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,

अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,

फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया -

अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।१२५।


'मय' को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, 'हाला'

'मीना' को 'मधुपात्र' दिया 'सागर' को नाम गया 'प्याला',

क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी

'मय-महिफल' अब अपना ली है मैंने करके 'मधुशाला'।।१२६।


कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,

कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,

कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,

फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।।१२७।


जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,

जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,

जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,

जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।।१२८।


जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,

जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,

आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,

पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।।१२९।


हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला

हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला

हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की

हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।।१३०।

hindipoetry

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,

मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,

मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,

जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।।१३१।


यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,

यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,

किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,

नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।।१३२।


कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,

कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!

पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,

कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।१३३।


विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला

यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,

शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,

जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।।१३४।


बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,

कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,

मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,

विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।।१३५।


पिरिशष्ट से


स्वयं नहीं पीता, औरों को, किन्तु पिला देता हाला,

स्वयं नहीं छूता, औरों को, पर पकड़ा देता प्याला,

पर उपदेश कुशल बहुतेरों से मैंने यह सीखा है,

स्वयं नहीं जाता, औरों को पहुंचा देता मधुशाला।


मैं कायस्थ कुलोदभव मेरे पुरखों ने इतना ढ़ाला,

मेरे तन के लोहू में है पचहत्तर प्रतिशत हाला,

पुश्तैनी अधिकार मुझे है मदिरालय के आँगन पर,

मेरे दादों परदादों के हाथ बिकी थी मधुशाला।


बहुतों के सिर चार दिनों तक चढ़कर उतर गई हाला,

बहुतों के हाथों में दो दिन छलक झलक रीता प्याला,

पर बढ़ती तासीर सुरा की साथ समय के, इससे ही

और पुरानी होकर मेरी और नशीली मधुशाला।


पितृ पक्ष में पुत्र उठाना अर्ध्य न कर में, पर प्याला

बैठ कहीं पर जाना, गंगा सागर में भरकर हाला

किसी जगह की मिटटी भीगे, तृप्ति मुझे मिल जाएगी

तर्पण अर्पण करना मुझको, पढ़ पढ़ कर के मधुशाला।

hindipoetryhelp

Post a Comment

0 Comments